अमेरिका की आबादी शिफ्ट हो रही शहर से कस्बों में, शहर के रिवेन्यू में आयी कमी

भारत उन देशों में शुमार हैं, जहां हर दूसरा व्यक्ति शहर जाकर ना केवल अपनी जीविका की तलाश करता है, बल्कि वहां बस जाने का ख्वाब भी रखता है। अगर आपके मन में भी ऐसा ही कुछ चल रहा तो आईये आपको दुनिया के सबसे बड़ी शहर की हकीकत से रूबरू कराते हैं, जहां लोग अब शहर छोड़कर जा रहे। वे आधुनिकता की जिंदगी से ऊब चुके हैं और अपना जीवन छोटे कस्बों और गांवों या खुली इलाकों में जीना चाहते हैं।

अमेरिका की आबादी शिफ्ट हो रही शहर से कस्बों में, शहर के रिवेन्यू में आयी कमी

वॉशिंगटन,

भारत उन देशों में शुमार हैं, जहां हर दूसरा व्यक्ति शहर जाकर ना केवल अपनी जीविका की तलाश करता है, बल्कि वहां बस जाने का ख्वाब भी रखता है। अगर आपके मन में भी ऐसा ही कुछ चल रहा तो आईये आपको दुनिया के सबसे बड़ी शहर की हकीकत से रूबरू कराते हैं, जहां लोग अब शहर छोड़कर जा रहे। वे आधुनिकता की जिंदगी से ऊब चुके हैं और अपना जीवन छोटे कस्बों और गांवों या खुली इलाकों में जीना चाहते हैं। अब मिडिल क्लास अमेरिकियों को यह एहसास हो चुका है, इसलिए अब वे छोटे शहर या कस्बों में बसना चाहते हैं। 
हालिया सर्वे के मुताबिक 1990 के बाद 10 लाख से अधिक आबादी वाले 56 शहरों की जनसंख्या कम हुई है। यहां रियल स्टेट कारोबार भी घाटे में चल रहा है। कोरोना के बाद ही कई जगह खाली पड़े हैं और मकान की कीमतें भी कम हो गयी है। दरअसल दुनिया कोरोना के बाद काफी बदल गयी है। कंपनियां या तो बंद हो गयी या फिर छोटे शहरों में शिफ्ट हो गये। वर्किंग कल्चर में भी काफी बदलाव आया है। अब वर्क फ्रॉम होम एक वर्किंग सिस्टम का हिस्सा बन गया है। शोध संस्थान ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के सीनियर फेलो विलियम फ्रे के मुताबिक आईटी, रियल स्टेट और इंटरटेनमेंट सेक्टर इससे प्रभावित हुआ है और उसके कर्मचारी बड़ी संख्या में शहर छोड़ रहे हैं। 

राजस्व में आयी कमी

एक तरफ जहां शहरों के राजस्व में कमी आ रही तो वंही कस्बाई क्षेत्र धनी हो ते जा रहे हैं। शहर छोड़ने वालों में अधिकत्तर लोग कामकाजी है, जिनकी सैलरी औसत से अधिक है। ये लोग टैक्सपेयर्स है। इनके जाने से राजस्व को बड़ी क्षति हुई है। न्यूयॉर्क, वॉशिंगटम जैसे शहरों को मिलने वाले राजस्व में कमी आयी है। वंही दूसरी ओर कस्बाई क्षेत्रों का डेमोग्राफी बदल रहा है। लॉस एंजिल्स, शिकागो, फिलाडेल्फिया के कई हिस्सों में अश्वेतों की संख्या बढ़ गयी है। अर्थशास्त्री निकोलस ब्लूम का मानना है कि ऐसा होने से अमेरिकी शहरों को बोझ कम होगा और महंगाई घंटेगी। कम आय वाले लोगों और छात्रों की जिंदगी मेट्रो शहरों में आसान होगी। 

पूर्वी यूरोप भी इसके जद में

ऐसा वाकया सिर्फ अमेरिका के शहरों में ही नहीं देखा जा रहा, बल्कि दुनिया के कई देशों में खासकर उत्तर - पूर्वी यूरोप का भी यही हाल है। नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों में भी पेशेवर लोग शहर छोड़ रहे हैं। वे कुछ दिन दफ्तर में तो कुछ दिन घर में वाले फॉर्मूले को अपना रहे और शहरों से दूर बस रहे हैं। 

जापान ने दिया था ऑफर

जापानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ष की शुरूआत में जापानी सरकार ने लोगों को शहर छोड़ने के लिए एकमुश्त रकम देने की पहल की थी। जिसमें शहर छोड़कर दूसरे गांव या कस्बों में बसने वाले परिवारों को 1 मिलियन येन प्रति बच्चा मिलेगा।