65 वर्षों तक जिस महिला ने झेला सामाजिक बहिष्कार का दंश, गाजे - बाजे के साथ निकली उनकी अंतिम यात्रा

संथाल समाज से बहिष्कृत बुधनी मंझियाइन का निधन हो गया, वो 85 वर्ष की थी।

65 वर्षों तक जिस महिला ने झेला सामाजिक बहिष्कार का दंश, गाजे - बाजे के साथ निकली उनकी अंतिम यात्रा

धनबाद


बुधनी मंझियाइन का शनिवार को गाजे बाजे और पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। अंतिम संस्कार से पूर्व उनके पार्थिव शरीर को डीवीसी के संयुक्त प्रशासनिक भवन लाया गया, जहां उन्हें श्रृद्धांजलि दी गयी। डीवीसी के पंचेत हिल अस्पताल में  शुक्रवार को देर रात उनका निधन हो गया था। पिछले 65 वर्षों से आदिवासी समाज से बहिष्कृत बुधनी मंझियाइन का 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। 

जवाहर लाल नेहरू थे बहिष्कृत किये जाने की वजह

संथाल समाज से आने वाली बुधनी मंझियाइन की कहानी बेहद दिलचस्प और जिंदगी एकांकी रही। 6 दिसंबर 1959 को तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पंचेत डैम का उद्घाटन करने आये थे। उस दौरान डैम का उद्घाटन पंडित नेहरू ने बुधनी मंझियाइन के साथ मिलकर किया था। इस दौरान प्रथम प्रधानमंत्री का स्वागत करने हुए उन्हें फूलों की माला पहनायी और इसी वजह से संथाल समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया। संथाल समाज के लोगों का मानना था कि जब कोई स्त्री किसी पुरूष के गले में माला डालती है तो उसका उस व्यक्ति से विवाह मान लिया जाता है। गैर - आदिवासी से विवाह रचाने की बात कहते हुए समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया। 

राजीव गांधी ने दी नौकरी

राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने, तो उनके सामने बुधनी की कहानी आयी। उन्होंने डीवीसी को तुरंत आदेश दिया कि बुधनी को नौकरी दी जाये। डीवीसी ने बुधनी को बुलाकर नौकरी दी। जब डीवीसी उन्हें नौकरी के लिए ढूंढ रही थी, तब बुधनी काम की तलाश में पुरूलिया जिला के रघुनाथपुर (सालतोड़) चली गयी थी। वहां उनकी मुलाकात सुधीर दत्त से हुई और उन दोनों ने शादी कर ली। उनकी एक बेटी है, जो विवाहित है।