'किसान बनाम सरकार' पुस्तक का राकेश टिकैत ने किया विमोचन, शब्दों में पढ़े तेरह महीने का आंदोलन

'किसान बनाम सरकार'  एक रुका हुआ फैसला पुस्तक का विमोचन दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग आईटीओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुआ। किसान नेता राकेश टिकैत ने पुस्तक के विमोचन के दौरान कहा कि ऐसे हालात में किसान पर किताब लिखी हिम्मत का काम ही है।

'किसान बनाम सरकार' पुस्तक का राकेश टिकैत ने किया विमोचन, शब्दों में पढ़े तेरह महीने का आंदोलन

दिल्ली  


'किसान बनाम सरकार'  एक रुका हुआ फैसला पुस्तक का विमोचन दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग आईटीओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुआ। किसान नेता राकेश टिकैत ने पुस्तक के विमोचन के दौरान कहा कि ऐसे हालात में किसान पर किताब लिखी हिम्मत का काम ही है। कितने  दिन किताब लिखने पर आजादी रहेगी पता नहीं। कहा कि  इस पर भी पाबंदी लग सकती है। उन्होंने कहा कि  पुस्तक लिखनी चाहिए बंदिशों के दौर में जरूर लिखनी चाहिए। देश में किसान की मजदूर की हालत क्या है। खतरनाक स्थिति है। आज किसान ,मजदूर की हालत खराब है। उन्होंने बिहार की स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि बिहार से पूरा एग्रीकल्चर सेक्टर खत्म हो गया। वहां के किसान अन्य राज्यों में मजदूरी करने को मजबूर हो गए  है।  यही हाल साउथ में है  वहां भी यही हाल है। कहा कि कुछ पत्रकार आज भी सच्चाई दिखा रहे है और लिख रहे है। बंदिशों के दौर में  कितने दिन चलेगा यह पता नहीं। कहा कि किताब को कोई आदमी फेंकता नहीं संभालकर रखता है।
विमोचन के दौरान पुस्तक के लेखक प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि हमने दिल्ली के चारो तरफ  तेरह महीने चले  आंदोलन में सात सौ किसानों को मरते हुए भी देखा है। सच्चाई  छुपती नहीं है । यह आंदोलन जरूरी था या गैर जरूरी,सरकार के साथ बैठकों का दौर ,ढाई प्रदेश के किसानों का आंदोलन, काले क़ानून का पक्ष  और आन्दोलन की फंडिंग और लाल किला कांड ,आंदोलन जीवी से लेकर तेरह महीने बाद किसानों की घर वापसी तक सभी  पहलूओं को ईमानदारी के साथ शब्दों के रूप में "किसान बनाम सरकार"पुस्तक  में उकेरा गया है।यह पुस्तक किसान आंदोलन में अपना हक मांगने आए उन सात सौ शहीद किसानों को समर्पित  है जो घर वापस नहीं लौट सके । 

किसान भी इंसान है,बस ये समझ ले सरकार:धीरेन्द्र नाथ   
वरिष्ठ लेखक धरेंद्र नाथ ने कहा कि किसान भी इंसान है। सरकार अगर  इस बात को समझ ले तो समस्या का समाधान हो जाए। तरह महीने चले आंदोलन में सात सौ किसान शहीद हुए लेकिन सरकार ने उस पर संज्ञान नहीं लिया। शब्द वीर और  वरिष्ठ पत्रकार ,लेखक प्रभाकर मिश्रा ने  इस पुस्तक किसान बनाम सरकार के माध्यम से संज्ञान लिया। उन्होंने पूर्व में हुए बिहार के चंपारण आदि  ऐतिहासिक आंदोलनों का भी जिक्र करते हुए उदाहरण पेश किए। कहा कि लोक सभा में जब किसान का परचम लहराएगा ,गांव -गांव खुशियों का आलम छाएगा।

किसानों को मिलने पर,भारत विश्व गुरु बनेगा :संदीप चौधरी
टीवी के मशहूर एंकर संदीप चौधरी ने  कहा कि देश में दो तिहाई लोग खेती किसानी मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे है। खेती देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के बावजूद किसी भी टीवी या समाचार पत्र  संस्थान  में कोई कृषि संवाददाता नहीं है।हैरानी की बात है।  जबकि अन्य सभी बीट के संवाददाता है। कृषि संवाद संवाददाता क्यों नहीं ? उन्होंने कहा कि किसान की फसलों का माकूल (सही )दाम  मिलने पर ही देश विश्व गुरु बनेगा।