सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासी सेंगेल अभियान की रैली रांची में, 30 दिसंबर को भारत बंद

राजधानी रांची में देशभर से संथाल आदिवासी जुटे, सरना धर्मकोड की मांग रखी।

सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासी सेंगेल अभियान की रैली रांची में, 30 दिसंबर को भारत बंद


रांची

झारखँड की राजधानी रांची में बुधवार को भारत भर से संथाल जुटे हैं। असम, त्रिपुरा, बंगाल, बिहार, ओड़िशा से जुटे संथाल सरना धर्मकोड की मांग रख रहे हैं। रांची के मोरहाबादी मैदान में आदिवासी सेंगेल अभियान की महारैली हुई, जिसमें सरना धर्मकोड को लेकर सरना समिति के लोगों का भी समर्थन मिला। मोरहाबादी में लोगों को संबोधित करते हुए नेताओँ ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मांग की है कि चुनाव से पहले इसकी घोषणा करें। सालखन मुर्मू ने कहा है कि प्रधानमंत्री अगर आदिवासियों की चिंता करते हैं तो अपने झारखंड दौरे के दौरान ही इसकी घोषणा कर आदिवासियों के संरक्षण की दिशा में बड़ी पहल करें। सालखन मुर्मू ने कहा है कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गयी तो 30 दिसंबर को भारत बंद होगा।

पीएम के नाम खुला पत्र

सरना धर्मकोड रैली में पीएम के नाम खुला पत्र बांटा गया, जिसमें लिखा गया है कि आप भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर (1875), जो झारखंड प्रदेश का स्थापना दिवस (15 नवंबर2000) भी है, के शुभ अवसर पर 15 नवंबर 2023 को बिरसा मुंडा के जन्मस्थली उलिहातू ग्राम, खूंटी-रांची पधार रहे हैं।आदिवासी संगेल अभियान बिरसा मुंडा और सिदो मुर्मू की धरती पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत करता है।आपने महामहिम राष्ट्रपति के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को पदास्थापित कर संपूर्ण भारत के आदिवासियों को सम्मानित और गौरान्वित किया है। उसी प्रकार भगवान बिरसा मुंडा को राष्ट्रीय आइकॉन बनाया है। बिरसा के जन्मदिन 15 नवंबर को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस 2022 में घोषित और पालन कर राष्ट्र के सभी आदिवासी वीर शहीदों और उनके राष्ट्र रक्षा संघर्षों और बलिदानों को रेखांकित और सम्मानित किया है। भारतीय आदिवासी समाज आपका हृदय से आभारी है। क्या आप इस ऐतिहासिक दौरे में भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड देकर धार्मिक आजादी प्रदान कर धन्य करेंगे? भारत के लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी को ऐतिहासिक मान्यता प्रदान कर एक और नया इतिहास गढ़ेंगे? हमें उम्मीद ही नहीं आप पर पूरा भरोसा है।

1951 तक आदिवासियों के लिए अलग धर्मकोड की व्यवस्था थी

आदिवासी नेताओँ ने कहा कि भारत देश के लगभग 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी अर्थात सरना धर्म कोड की मान्यता से वंचित रखने के लिए मुख्यतः कांग्रेस और भाजपा दोषी है। 1951 की जनगणना तक आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक कॉलम था जिसे कांग्रेस पार्टी ने बाद में हटा दिया। अब भाजपा आदिवासियों को जबरन हिंदू बनाने पर उतारू है। परन्तु 2011 की जनगणना में प्रकृति पूजक आदिवासियों ने 50 लाख की संख्या में सरना धर्म तिखाया था जबकि मान्यता प्राप्त जैन धर्म वालों की संख्या 44 लाख थी तब भी आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता अबतक नहीं देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकार पर हमला है। धार्मिक गुलामी की यह प्रताड़ना भारत के आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान ईसाई आदि बनने-बनाने को मजबूर करती है। नतीजनन आदिवासी अपनी भाषा संस्कृति, सोच संस्कार और प्रकृतिवादी जीवन मूल्यों आदि की जड़ों से कटने को विवश है। जो भयंकर धार्मिक शोषण और मानवाधिकार का उल्लंघन है।